मैसूर राज्य का इतिहास
मैसूर राज्य हैदरअली ने अधिकार करके अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित की थी। इसने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए फ्रांसीसियों की सहायता से डिंडीगुल (तमिलनाडु) में एक शस्त्रागार की स्थापना की।
इसके अलावा उसने सैनिकों को विदेशी प्रशिक्षण भी दिलवाया। अपनी सेना को मजबूत किया ।
*प्रथम अंग्रेज- मैसूर युद्ध - 1767-69 -* हैदर अली एक बुद्धिमान कूटनीतिक व्यक्ति था उसने मराठो को धन देकर तथा निजाम को कुछ क्षेत्रों को देने का वादा करके अपनी तरफ मिला लिया। इसके बाद कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया। वह अंग्रेजों को परास्त का दिया अन्ततः मंद्रास संधि के द्वारा युद्ध समाप्त हुआ।
*द्वितीय अंग्रेज - मैसूर युद्ध- 1780-84*
1771 मे हैदरअली के राज्य पर आक्रमण किया तो अंग्रेजों ने कोई मदद नहीं किया। हैदर अली इसे मद्रास संधि का उल्लंघन माना |
हैदर अली ने अपनी कूटनीति से मराठों और निजाम के साथ मिलकर एक त्रिगुट बना लिया तथा जुलाई 1780 में कर्नाटक पर पुनः आक्रमण किया और अर्काट को छीन लिया।
1782 में टीपू सुल्तान ने कर्नल ब्रेथबेट के अधीन ब्रिटिश सेना से तंजौर में आत्म समर्पण करा लिया ।
इसी बीच हैदरअली की मृत्यु हो गई | अंततः 1784 में संधि कर ली जो *मंगलौर संधि* से जानी जाती है। इस संधि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के भू-भाग लौटा दिये।
*तृतीय अंग्रेज- मैसूर युद्ध 1790-92*
1790 में अंग्रेजी सेना मैसूर की ओर बढ़ी उन्होंने डिडीगुल, कोयम्बटूर तथा पालघाट पर अधिकार कर लिया। मार्च 1791 मे कार्नवालिस ने बंग्लोर पर अधिकार कर लिया तथा टीपू सुल्तान की राजधानी की तरफ बढ़ा। 1792 में टीपू सुल्तान ने आत्म समर्पण कर दिया तथा
*श्री रंगपटनम सन्धि* के द्वारा समाप्त हो गया। इसके अनुसार टीपू ने अपने दो पुत्रों को बंधक के रूप में अंग्रेजों को सौंप दिये तथा हर्जाने के रूप में 3 करोड़ रूपया देना पड़ा। इसके अलावा टीपू को अपना आधा राज्य देना पड़ा|
*चतुर्थ अंग्रेज - मैसूर युद्ध*
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1799 - इसका प्रमुख कारण टीपू द्वारा अंग्रेजों की सहायक-संधि को न स्वीकार करना था। अंग्रेजों की तीन सेनाए क्रमश: जनरल हेरिस, जनरल स्टीवर्ट, वेलेजली के नेतृत्व में तीन दिशाओं से टीपू के राज्य की ओर बढ़ी। दो घमासान युद्धों में टीपू की पराजय हुई और टीपू मारा गया मैसूर राज्य अंग्रेजों ने मिला लिया।
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