उत्तर प्रदेश के प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh (2025)

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  उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है। इस राज्य में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान संस्थान कार्यरत हैं, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT Kanpur) स्थापना: 1959 | स्थान: कानपुर IIT कानपुर उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध तकनीकी संस्थान है। यह इंजीनियरिंग, विज्ञान, और अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी है। यहाँ उच्च स्तरीय प्रयोगशालाएँ, रिसर्च प्रोजेक्ट्स और नवाचार केंद्र मौजूद हैं। प्रमुख क्षेत्र: इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, पर्यावरण तकनीक योगदान: टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर और स्टार्टअप विकास 2. सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट (CDRI), लखनऊ स्थापना: 1951 | स्थान: लखनऊ यह संस्थान औषधि अनुसंधान में भारत के सबसे ...

About Mahatma Gandhi. |खेड़ा आंदोलन |चंपारण सत्याग्रह|

 महात्मा गांधी- 

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869  को गुजरात के तटीय शहर पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था | इनके पिता करम चंद्र गांधीमाता पुतलीबाई थी | पुतलीबाई करमचंद्र की चौथी पत्नी थी , उनकी पहली तीन पत्नियां प्रसव के समय मर गई थी, | 
करमचंद्र गांधी उपनाम कबा गांधी एक राजनीतिक व्यक्ति थे,  यह पोरबंदर, राजकोट व वीकानेर रियासत में दीवान (प्रधानमंत्री) पद पर कार्य कर किए थे |
                 मई 1883 में महात्मा गांधी का विवाह 14 साल की कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया | जब गांधी जी 15 वर्ष की थे , तब इनकी पहली संतान में जन्म लिया लेकिन कुछ ही दिन मे मृत्यु हो गई | बाद में हरिलाल गांधी 1888 में, मणिलाल गांधी 1892 में, रामदास गांधी 1897 में और देवदास गांधी 1900 में जन्मे|
              4 सितंबर 1888 को गांधी,  यूनिवर्सिटी लंदन में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए |
बैरिस्टर बनने के बाद भारत लौटे | मुंबई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली| यही कारण था कि 1893 में एक भारतीय फार्म से नेटाल दक्षिण अफ्रीका में, जो उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्य का भाग होता था,  1 वर्ष के करार पर वकालत का कारोबार स्वीकार कर लिए | वे गुजराती व्यापारी दादा अब्दुल्ला  का मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे | और अपने जीवन के महत्वपूर्ण व्यक्ति 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किया|
                गांधीजी डरबन  में एक ट्रेन से प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर यात्रा कर रहे थे , इनको पीटरमारिट्जवर्ग स्टेशन पर इसलिए फेंक दिया गया , क्योंकि यह काले थे | मई 1894 में मुकदमा पूरा होने के बाद गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में 1894 में ही 'नटाल इंडियन कांग्रेस' की स्थापना की |
                 महात्मा गांधी सर्वप्रथम 1901 में आयोजित कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया था | इस अधिवेशन में गांधी जी का दक्षिण अफ्रीका पर प्रस्ताव पारित हुआ था|  इस अधिवेशन की अध्यक्षता दिनशा वाचा ने की थी  | इसी समय उनकी मुलाकात फिरोजशाह मेहता, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व गोपाल कृष्ण गोखले  से भी हुई थी | 
गांधी जी ने बम्बई  में अपना विधि कार्यालय की स्थापना किया और यहीं पर प्रैक्टिस करने लगे | वर्ष 1902 (दिसंबर) में जोसेफ चैंबरलिन (लंदन) के लिए मुकदमा लड़ना स्वीकार किया और पुनः दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर निकल गए |
                महात्मा गांधी ने डरबन,  दक्षिण अफ्रीका में फीनिक्स आश्रम की स्थापना 1904 में किया | यह गांधी जी द्वारा स्थापित पहला आश्रम था|  1985 में दक्षिण अफ्रीका में हुए विवाद के बाद इसे बंद कर दिया गया था , 27 फरवरी सन् 2000 को पुनः खोला गया |
             महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में 1903 में इंडियन ओपिनियन  नामक समाचार पत्र निकाला | यह गुजराती,  हिंदी , तमिल और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होता था | इस समाचार पत्र में जातीय भेदभाव और सिविल अधिकार के मुद्दे होते थे इसका प्रकाशन 1915 तक चला |
            महात्मा गांधी जी 1910 में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ट्रांसवाल,  दक्षिण अफ़्रीका में 'टालस्टाय फॉर्म' की स्थापना की और यहीं से सत्याग्रह (अहिंसा) की शुरुआत किया| अंत में दक्षिण अफ्रीकी सरकार झुक गई और जातीय भेदभाव के खिलाफ कानून बनाना पड़ा | 1914 के अंत में गांधी दक्षिण अफ्रीका से इंग्लैंड चले गए | 1915 में लंदन से गांधीजी बम्बई  में 9 जनवरी 1915 को वापस आए| 
                महात्मा गांधी ने 1915 में अहमदाबाद के कोचरब क्षेत्र में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की थी | यह आश्रम विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के संचालन की सुविधा की दृष्टि गति से 17 जून 1917 को साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित कर दिया गया जिससे साबरमती आश्रम नाम दिया गया |
                1916 में हुए कांग्रेस-मुस्लिम लीग के अधिवेशन के समय महात्मा गांधी जी की मुलाकात बिहार के राजकुमार शुक्ल से होती है और चंपारण आने का आग्रह किया | 19वीं सदी की समाप्त होते-होते जर्मनी के रासायनिक रंगों ने बाजार में नील का स्थान ले लिया,  फलस्वरुप चंपारण के यूरोपीय बागान मालिक नील की खेती बंद करने को विवश हो गए | किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे | गोरे बागान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान एंव अन्य गैरकानूनी करो कि दर मनमाने ढंग से बढ़ा दी | 1917 में चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों के प्रति यूरोपीय अधिकारियों के अत्याचारों के विरोध में गांधी जी ने भारत में प्रथम सत्याग्रह किया | इस आंदोलन में गांधीजी के सहयोगी राजेंद्र प्रसाद,  बृज किशोर,  महादेव देसाईं , नरहरि पारीख तथा जे०बी० कृपलानी थे | मामले की जांच के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक कमेटी का गठन किया,  इस तिनकठिया (3/20 पर नील की खेती अनिवार्य) पद्धति पर रिपोर्ट दिया  और अंत में ब्रिटिश सरकार ने तिनकठिया पद्धति को समाप्त कर दिया | बागान मालिकों द्वारा अवैध वसूली का 25% वापसी भी  करवाया |  एन०जी० रंगा ने महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह का विरोध किया था 
जबकि रविंद्र नाथ टैगोर  ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान ही उन्हें महात्मा की उपाधि दे दी थी | 
19 अप्रैल 1917 को चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी|
                सन् 1918 ईस्वी में खेड़ा,  गुजरात की पूरी फसल अकाल व प्लेग के कारण बर्बाद हो गई | किसानों की दृष्टि से फसल चौथाई भी नहीं हुई थी | स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी | पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार न थे |  इसी मुद्दे पर महात्मा गांधी ने खेड़ा की किसानों के पक्ष में सत्याग्रह करने की अपील की | 22 मार्च 1918 को गांधीजी ने खेड़ा आंदोलन की घोषणा की और उसकी बागडोर संभाल ली | गांधी जी ने किसानों से कहा जो खेत बेजापुर कुर्क कर लिए गए हैं , उसकी फसल काटकर ले आए | गांधी जी के इस आदेश का पालन करने मोहनलाल पांड्या आगे बढ़े और एक खेत से प्याज की फसल उखाड़ लाए | इसी कार्य में कुछ अन्य किसानों ने भी उनकी सहायता की|  वे सभी पकड़े गए,  मुकदमा चला और उन्हें सजा हुई | सरकार को अपनी भूल का अनुभव हुआ,  पर उसे वह खुलकर स्वीकार नहीं करना चाहती थी | अतः उसने बिना कोई सार्वजनिक घोषणा किए ही गरीब किसानों से लगान वसूली बंद कर दी और यह प्रयत्न किया कि किसानों को यह अनुभव न  हो पाए कि सरकार ने किसानों के सत्याग्रह से झुक कर किसी प्रकार का कोई समझौता किया है | यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण सा-था तथापि भारतीय चेतना के इतिहास मे  इसका महत्व चंपारण सत्याग्रह से कम नहीं है|  गांधीजी के सत्याग्रह के आगे विवश होकर ब्रिटिश सरकार ने आदेश दिया कि वसूली समर्थ किसानों से ही की जाय |

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