उत्तर प्रदेश के प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh (2025)

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  उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है। इस राज्य में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान संस्थान कार्यरत हैं, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT Kanpur) स्थापना: 1959 | स्थान: कानपुर IIT कानपुर उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध तकनीकी संस्थान है। यह इंजीनियरिंग, विज्ञान, और अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी है। यहाँ उच्च स्तरीय प्रयोगशालाएँ, रिसर्च प्रोजेक्ट्स और नवाचार केंद्र मौजूद हैं। प्रमुख क्षेत्र: इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, पर्यावरण तकनीक योगदान: टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर और स्टार्टअप विकास 2. सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट (CDRI), लखनऊ स्थापना: 1951 | स्थान: लखनऊ यह संस्थान औषधि अनुसंधान में भारत के सबसे ...

What is Kakori case?

 When did the Kakori incident happen?

काकोरी कांड-

शचींद्रनाथ सान्याल व योगेंद्र नाथ चटर्जी, हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ( HRA) की ओर से प्रकाशित इश्तहार और उसके संविधान को लेकर बंगाल पहुंचे| वहां पर दोनों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और हजारीबाग जेल में बंद कर दिया गया |
              दोनों प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद राम प्रसाद बिस्मिल के कंधों पर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल के क्रांतिकारी सदस्यों का उत्तरदायित्व भी आ गया|, पार्टी के कार्य ही धन की आवश्यकता के लिए 7 मार्च 1925 बिचपुरी (आगरा) तथा 24 मई द्वारका पुर में जो डकैती डाली परंतु उसमें कुछ विशेष धन हाथ ना आया |आखिरकार उन्होंने निश्चय किया कि अब केवल सरकारी खजाना लूटेंगे |
                 योजना अनुसार दल की एक प्रमुख सदस्य राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "8 डाउन सहारनपुर -लखनऊ पैसेंजर ट्रेन" को चैन खींचकर रोका और क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खान , पंडित चंद्रशेखर आजादअन्य छह सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया |इस घटना को काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है|
            इन क्रांतिकारियों के पास पिस्तौल के अतिरिक्त जर्मनी के बने चार माउजर भी थे | खजाने का बक्सा खोलने के लिए अशफाक उल्ला खान ने अपना माउजर मन्मथ नाथ गुप्ता को पकड़ा दिया और हथौड लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए| उत्सुकता बस मन्मथ नाथ गुप्ता ने माउजर का ट्रिगर दबा दिया, जिससे अहमद अली नाम के मुसाफिर को लग गई  |वह मौके पर ही ढेर हो गया |
                  ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गंभीरता से लिया और सी०आई०डी० इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैंड की सबसे तेज तर्रार पुलिस को इसकी जांच सौंपी | बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी HRA के कुल 40 क्रांतिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने ,सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्युदंड सुनाई गई|
                अशफाक उल्ला खां और सचिंद्र नाथ सान्याल को तब गिरफ्तार किया गया , जब मुख्य काकोरी षड्यंत्र केस फैसला हो चुका था, पर इन दोनों पर पूरक मुकदमा दायर किया गया | फिर अशफाक उल्ला खान को फांसी दी गई और शचींद्र नाथ सान्याल को उम्र कैद की सजा सुनाई गई|
                 पंडित मोतीलाल नेहरु में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में एक बचाव समिति का गठन किया था | जिससे काकोरी कांड बचाव समिति कहा जाता है |

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