उत्तर प्रदेश के प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh (2025)

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  उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है। इस राज्य में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान संस्थान कार्यरत हैं, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT Kanpur) स्थापना: 1959 | स्थान: कानपुर IIT कानपुर उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध तकनीकी संस्थान है। यह इंजीनियरिंग, विज्ञान, और अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी है। यहाँ उच्च स्तरीय प्रयोगशालाएँ, रिसर्च प्रोजेक्ट्स और नवाचार केंद्र मौजूद हैं। प्रमुख क्षेत्र: इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, पर्यावरण तकनीक योगदान: टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर और स्टार्टअप विकास 2. सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट (CDRI), लखनऊ स्थापना: 1951 | स्थान: लखनऊ यह संस्थान औषधि अनुसंधान में भारत के सबसे ...

What Is The Khilafat Movement And What Did It Do? The movement began in 1919.| खिलाफत आंदोलन

 खिलाफत आंदोलन- सितंबर 1919.

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी |  युद्ध के बाद पराजित तुर्की को ब्रिटेन के अत्याचारों का शिकार होना पड़ा | इन अन्याय के विरुद्ध 1919 ईस्वी  में मोहम्मद अली तथा शौकत अली  (जो अली बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध थे ) ,अब्दुल कलाम आजाद और हसरत मोहानी  ने आंदोलन शुरू किया | युद्ध के दौरान सभी नेताओं को बंदी बनाया गया था , युद्ध के बाद सभी नेताओं को छोड़ दिया गया |  इस आंदोलन के लिए एक खिलाफत कमेटी  का गठन किया गया था , इस कमेटी में गांधीजी भी शामिल हो गए|  तुर्की के सुल्तान को खलीफा (मुसलमानों का धार्मिक नेता ) भी माना जाता था|  इसलिए तुर्की में हो रहे अन्याय के प्रति आंदोलन चलाया गया,  उसे खिलाफत आंदोलन का नाम दिया गया |  इस आंदोलन ने असहयोग का नारा दिया |
                   कांग्रेस ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन खलीफा की पुनः स्थापना तथा मुसलमानों की सहानुभूति पाने के लिए किया था | गांधीजी के अनुसार यह हिंदू - मुस्लिम एकता के लिए स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा जाए जो आगे 100 वर्षों में भी प्राप्त नहीं हो सकता | मोहम्मद अली जिन्ना खिलाफत आंदोलन को देश की स्वतंत्रता के आंदोलन से जोड़ने के विरोधी थे |  उन्होंने गांधीजी को राजनीति में धर्म को ना लाने की सलाह दी थी कि मुस्लिम धार्मिक नेताओं एवं उनके अनुयायियों के कट्टरपंथ को प्रोत्साहित ना करें  | 
                    हकीम अजमल खां ने खिलाफत आंदोलन के दौरान " हाजिक-उल-मुल्क"  की पदवी त्याग दी थी |  यह पदवी ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1908 में प्रदान की गई थी |

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