What is the Montagu Declaration 20 August 1917| मांटेग्यू घोषणा -20 अगस्त 1917

 मांटेग्यू घोषणा -20 अगस्त 1917:-

आंदोलन के उबाल को रोकने के लिए 20 अगस्त 1917 को भारत सचिव मांटेग्यू की घोषणा प्रसारित की गई | इसमें कहा गया कि "भारत में ब्रिटिश शासन का लक्ष्य स्वशाशित  संस्थाओं का क्रमिक विकास है ताकि ब्रिटिश साम्राज्य की एक अभिन्न अंग के रूप में क्रमशः उत्तरदायित्वपूर्ण शासन स्थापित किया जा सके" | इस घोषणा में आगे कहा गया कि जितनी जल्द हो सकेगा इस दिशा में कदम उठाया जाएगा |
                 इस घोषणा के बाद 6 अक्टूबर 1917 ईस्वी में 
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी और मुस्लिम लीग कमेटियों की संयुक्त बैठक इलाहाबाद में हुई,  जिसमें सत्याग्रह विचार को त्याग दिया गया |  मांटेग्यू घोषणा के बाद एनी बेसेंट तथा अन्य लीगी नेताओं को रिहा कर दिया गया | 
                इस घोषणा की स्वीकृति के प्रश्न पर कांग्रेस में एक बार पुनः फूट पड़ गई | पहली फूट (सूरत 1907) में गरम पंथी अलग हो गए थे| लेकिन इस बार नरमपंथी कांग्रेस से अलग हो गए | मांटेग्यू की घोषणा का नरम पंथियों ने स्वागत किया | लेकिन गरमपंथियों ने इसे अपर्याप्त तथा स्वीकार न करने योग्य बताया | उदारवादियों के प्रमुख नेता थे - दिनशा वाचा, सुरेंद्रनाथ बनर्जी,  भूपेंद्रनाथ वशु,  अंबिका चरण मजूमदार आदि  इसके उपरांत उदारवादियों ने अपना एक सम्मेलन नवंबर 1918 में बम्बई में बुलाया और इस सम्मेलन में अपनी एक पार्टी लिबरल फेडरेशन स्थापित की |
                  इसके बाद 26 से 31 दिसंबर 1918 ईस्वी को कांग्रेस का अधिवेशन दिल्ली में बुलाया गया | जिसके अध्यक्ष बाल गंगाधर तिलक चुने गए थे, लेकिन उन्हें वैलेंटाइन चिरोल के विरुद्ध मानहानि के मुकदमे की पैरवी करने लंदन जाना पड़ा | इस कारण इस अधिवेशन की अध्यक्षता पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी |  इस अधिवेशन में कांग्रेस ने मुख्य प्रस्ताव यह पारित किया कि अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि भी शामिल हो | जिसके लिए कांग्रेस ने बाल गंगाधर तिलक , महात्मा गांधी और हसन इमाम को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया |

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