Subhas Chandra Bose and Azad Hind Fauj-(सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज)

 सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज-

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 उड़ीसा के कटक में हुआ |
उन्होंने 1919 में कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की | 
1920 में आई सी एस की परीक्षा में चौथा रैंक प्राप्त किया | 22 अप्रैल 1922 में भारत सचिव ई.एस. मांटेग्यू को आई.सी.एस से त्यागपत्र देने का पत्र लिखा. 
जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ट्राइपास( ऑनर्स) की डिग्री के साथ स्वदेश वापस लौट आये |
                     सुभाष चंद्र बोस 1938 व 1939 में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता की तथा 1939 में गांधी जी से कांग्रेस कार्य समिति गठित करने के मुद्दे पर विवाद हो गया तथा पार्टी पद से इस्तीफा दे दिया | 
3 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की |
                   जुलाई 1940 में कोलकाता स्थित 'हाटवेट स्तंभ' जो भारत की गुलामी का प्रतीक था , सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातों-रात वह सब मिट्टी में मिला दिया | सुभाष के स्वयंसेवक उसकी नीव की एक-एक ईंट उखाड़ ले गए | इसके माध्यम से सुभाष ने यह संदेश दिया था कि जैसे उन्होंने यह स्तंभ धूल में मिला दिया है उसी तरह वह ब्रिटिश साम्राज्य की भी ईट से ईट बजा देंगे |
              सुभाष चंद्र बोस को जुलाई 1940 में गिरफ्तार कर लिया गया ,लेकिन जेल में ही भूख हड़ताल करने पर 5 दिसंबर 1940 को उन्ही के घर में ही नजरबंद कर दिया गया था|  17 जनवरी 1941 को सुभाष चंद्र बोस अपने घर से फरार हो गए| गोवा, पेशावर ,काबुल, मास्को होते हुए 28 मार्च 1941 को बर्लिन पहुंचे | बर्लिन  में इनका स्वागत हिटलर के प्रमुख सहायक रिबनट्राप ने किया|  यहीं पर सुभाष चंद्र बोस को हिटलर ने नेताजी की उपाधि प्रदान की  |
                    सुभाष चंद्र बोस जर्मनी में भारतीय स्वतंत्र संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की | जनवरी 1942 मे 10000 युद्ध बंदियों को मिलाकर सैनिक दस्ते भी तैयार किए|  रोम एवं पेरिस में स्वतंत्र भारत केंद्र स्थापित किए थे| 
                        दिसंबर 1941 में उत्तरी मलय के जंगलों में कैप्टन मोहन सिंह के नेतृत्व वाली 1/14 पंजाब रेजीमेंट की टुकड़ी जापानी सेना से पराजित हुई  | इस टुकड़ी के अंग्रेज लेफ्टिनेंट कर्नल एल०बी० फिट्सपेट्रिक जापान के युद्ध बंदी हुए| किंतु बैंकॉक निवासी भारतीय सिख ज्ञानी प्रीतम सिंह की जिम्मेदारी लेने पर कैप्टन मोहन सिंह व एवं अन्य भारतीय सैनिकों को युद्ध बंदी के बजाय जापान के मित्र का दर्जा दिया गया | ज्ञानी प्रीतम सिंह गदर पार्टी के सदस्य थे और बैंकांक में भारतीय स्वतंत्रता के लिए कार्यरत थे | जापान के मेजर आई वॉची फूजीवारा एवं ज्ञानी प्रीतम सिंह ने कैप्टन मोहन सिंह को इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व करने के लिए उत्साहित किया | आइ०एन०ए० की औपचारिक घोषणा 1 सितंबर 1942 में कर दी गई, जिसका नेतृत्व कैप्टन मोहन सिंह कर रहे थे |
                        मलय क्षेत्र में भारतीयों द्वारा अपना राजनीतिक संगठन ऑल इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष रासबिहारी बोस थे|  1942 में ही बैंकांक में काउंसिल आफ एक्शन एंव प्रतिनिधित्व समिति के गठन का प्रस्ताव किया गया,  जिससे इंडियन इंडिपेंडेंस लीग व इंडियन नेशनल आर्मी के मध्य समन्वय एवं अधीक्षण का दायित्व सौंपा गया था|  रासबिहारी बोस को काउंसिल आफ एक्शन का अध्यक्ष बनाया गया | 
जबकि के. पी . के. मेनन , नेधाम राघवन , नागरिक सदस्य 
तथा मोहन सिंह एवं गिलानी , सैनिक सदस्य थे |
                      जापानियों से वैचारिक मतभेद के कारण दिसंबर 1942 में मोहन सिंह ने आइ.एन.ए.( आजाद हिंद फौज) के विघटन की घोषणा कर दी, किंतु रासबिहारी बोस ने मोहन सिंह को उनके पद से बर्खास्त कर दिया, फल स्वरूप राज बिहारी बोस ने आई. एन .ए .का पुनर्गठन किया और इसकी बागडोर 4 जुलाई 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंपी|  सिंगापुर में ही आजाद हिंद फौज के प्रमुख सुभाष चंद्र बोस बन गए |
                      21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथेहाल में एक विशाल जनसभा में बोस ने अस्थाई सरकार बनाने की घोषणा की  | सुभाष चंद्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री तथा सेना अध्यक्षता थे | 
वित्त विभाग ए.सी. चटर्जी को , प्रचार विभाग एस.ए.अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया| 
अपने सैनिकों का आवाहन करते हुए बोस ने कहा था- बहुत त्याग किया है , किंतु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है, आजादी को आज हमें अपने ही शीशफल चढ़ा देने वाले पागल पुजारी की आवश्यकता है , जो अपना सिर काटकर स्वाधीनता की देवी को चढ़ा सके,  "तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूंगा"|
                     23 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने इस सरकार की तरफ से ब्रिटेन और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी |  6 नवंबर 1943 को जापान ने अपने कब्जे वाले दो भारतीय द्वीप अंडमान एवं निकोबार अस्थाई सरकार को सौंप दिए | 31 दिसंबर 1943 को आजाद हिंद फौज का इन पर कब्जा हो गया तथा इनका नामकरण क्रमश: शहीद एवं स्वराज द्वीप कर दिया गया |
           आजाद हिंद सेना की कई ब्रिगेड थी जैसे - महात्मा गांधी ब्रिगेड,  अबुल कलाम आजाद ब्रिगेड , जवाहरलाल नेहरू बिग्रेड और रानी लक्ष्मीबाई ब्रिगेड (महिला टुकड़ी), इसके अलावा सुभाष ब्रिगेड भी थी, जिसके सेनापति शाहनवाजखां थे | यह सेना जनवरी 1944 में रंगून पहुंची , जहां मार्च में इसने ब्रिटिश सेना को परास्त किया | मई 1944 आजाद हिंद फौज ने माऊडोक में भारतीय सीमा में कदम रखा लेकिन साधनों के अभाव में इस सेना को पीछे हटना पड़ा फिर भी फौज की एक टुकड़ी जापानी सेना के साथ कोहिमा पहुंच गई |  अल्प साधनों के कारण इस सेना को पीछे हटना पड़ा | 
13 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे|  
18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस और हबीबुर्रहमान टोकियो जाने के बाद फरमोसा हवाई अड्डे से विमान पर रवाना हुए लेकिन विमान उड़ते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया | इसके बाद सुभाष चंद्र बोस का पता नहीं चला यह आज भी रहस्य है
  • नेताजी की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को हिटलर ने दिया था|
  • देश नायक की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने दिया था|
  • देशभक्तों का देशभक्त की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को महात्मा गांधी ने दिया था|
  • जय हिंद,     दिल्ली चलो ,     तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा,      नारा-  सुभाष चंद्र बोस ने दिया था |

आजाद हिंद फौज का मुकदमा:-

नवंबर 1945 में ब्रिटिश सरकार ने आजाद हिंद फौज के कर्नल शाहनवाज , कैप्टन गुरबख्श सिंह ढिल्लों , लेफ्टिनेंट पी.के. सहगल व राशिद अली,  वर्मा से गिरफ्तार कर लिया | इन पर ब्रिटिश सम्राट के विरुद्ध युद्ध करने का आरोप लगाया गया तथा कर्नल शाहनवाज , कैप्टन ढिल्लों व लेफ्टिनेंट पी.के. सहगल को फांसी की सजा तथा राशिद अली को 7 साल की सजा सुनाई गई|
          इनके बचाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने आजाद हिंद बचाव समिति का गठन किया | जिसमें भूलाभाई देसाई नेतृत्व कर रहे थे |  इनके साथ सर तेज बहादुर सप्रू , कैलाश नाथ काटजू , अरुणा आसफ अली और जवाहरलाल नेहरू( 25 वर्ष बाद नेहरू ने वकालत किया) प्रमुख वकील थे | 
         5 नवंबर 1945 से 11 नवंबर 1945 तक दिल्ली के लाल किले पर मुकदमा चलाया गया | 12 नवंबर 1945 को संपूर्ण देश में आजाद हिंद फौज दिवस मनाया गया | तीनों की फांसी( सहगल,  शाहनवाज , ढिल्लों) के खिलाफ व्यापक विरोध के चलते , अंत में विवश होकर वायसराय लार्ड वेवेल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था | 

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