आदिवासी विद्रोह| aadivasi vidroh aur unke karan

 आदिवासी विद्रोह

अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीतियों के शोषण से उठकर आदिवासियों ने तीव्र और हिंसक विद्रोह किए थे आदिवासी समुदाय आमतौर पर सामान्य नागरिक जीवन से अलग रहते हैं तथा उनकी अपनी जीवन शैली तथा निश्चित दायरा होता है वह इसमें बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते हैं ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना के बाद अंग्रेजों ने आदिवासियों के क्षेत्रों का अतिक्रमण किया तो उन्होंने इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप विद्रोह की है

-  पहाड़िया विद्रोह 1788:-

 बंगाल मे पहाड़िया विद्रोह का कारण था इनकी जमीनों को छीनकर जमीदारों को सौंपा जाना| इनका विद्रोह 1790 में दबा दिया गया

चोआण विद्रोह 1798:-

 बंगाल के चोआण आदिवासी झूम की खेती करते थे तथा स्थानीय जमीदारों के यहां सिपाही के रूप में काम करते थे बदले में इन्हें जमीन दी जाती थी जिसे पाइकान जमीन कहा जाता था विद्रोह का आरंभ पुराने जमीदार दुर्जन सिंह ने किया, जुलाई 1798 में गोवर्धन दिक्पति नामक अपदस्थ जमींदार ने चोआड़ो के सहयोग से विद्रोह किया ,इस विद्रोह की शक्ति और व्यापकता का प्रमाण यही है कि जे०सी० प्राइस ने एक पुस्तक  चोआड़ विद्रोह  भी लिखी है |

चेर विद्रोह 1800:-

झारखंड में यहां कंपनी और राजाओं ने मिलकर यहां की जमीदारों की जमीने छीन ली|
चेर विद्रोह का नेतृत्व भूषण सिंह ने किया था |
  • आदिवासी शब्द का प्रयोग ठक्करबापा ने किया था

भील विद्रोह 1818:-

महाराष्ट्र में भील विद्रोह का नेतृत्व विद्रोह भील नेता हिरिया ने किया  | इस पर अंग्रेज सेनापति जेम्स आउट्रम ने अंग्रेजों को सेना में भर्ती किया तथा उन्हें जमीन दी गई |


हो विद्रोह 1820:-

बंगाल में अंग्रेजों ने यहां के राजा जगन्नाथ को अपने संरक्षण में ले लिया |राजा ने हो आदिवासियों का अंग्रेजी सेना की सहायता से दमन करने की सोची, क्योंकि ये आदिवासी अपने को स्वतंत्र समझते थे ,जबकि राजा इन्हें प्रजा समझता था| अंत में हो आदिवासियों ने आत्मसमर्पण कर दिया |

 खासी विद्रोह 1829:-

खासी, जयंतिया ,और गारो पहाड़ियों के बीच वाले क्षेत्र में निवास करने वाली एक लड़ाकू आदिवासी जाति थी, यह विद्रोह सड़क बनाने के मुद्दे पर शुरू हुआ था, इस विद्रोह के नेतृत्वकर्ता तीरथ सिंह थे, उनके सहयोगी में बार मनिक और मुकुंद सिंह भी थे, अंततः 1833 ईस्वी में तीरथ सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया और विद्रोह शांत हो गया |

सिंगफो विद्रोह 1830:-

सिंगफो भी असम के सीमावर्ती क्षेत्र में बसे पहाड़ी आदिवासी थे ,सिंगफो विद्रोह 1830 में हुआ था |

अका विद्रोह 1829 से 1830:-

यह भी असम की घाटियों में रहने वाली एक आदिवासी जाती थी अकाओं के सरदार तागी राजा ने अका विद्रोह का नेतृत्व किया|

कोल विद्रोह 1831:-

कोल विद्रोह छोटानागपुर (झारखंड) में कोल आदिवासियों ने जमीदारों के विरुद्ध एक भयंकर विद्रोह कर दिया, कोल विद्रोह का मूल कारण भूमि तथा लगान संबंधी विवाद था, शुरुआत के समय में नेतृत्व बुद्धू भगत ने किया|
 कोलो की पुरानी परंपरा अनुसार 7 से लेकर 12 गांव को मिलाकर उनकी एक इकाई पीर होती थी जिस पर एक प्रधान (मानकी)नियुक्त होता था |जो कि अपने क्षेत्र का लगान स्थानीय सरदारों को देता था ,विद्रोह का एक कारण यह भी था कि मानकियो को उनके पद से हटाया जाना तथा उनकी स्त्रियों से बलात्कार |
कोलो का नेतृत्व सुर्गा और शिगराय ने किया था |


गोंड आदिवासियों का विद्रोह 1833:-

उड़ीसा में गोंड विद्रोह संबलपुर राज्य की रानी मोहन कुमारी उच्च जातियों के हिंदुओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया के कारण फैला ,1833 ने रानी को गद्दी से उतार कर नारायण सिंह को राजा बनाया| लोगों ने इसका तीव्र विरोध किया इसका नेतृत्व बलभद्र दाऊ ने किया 

कोलियो का विद्रोह 1839:-

 कोली कच्छ की सीमा से लेकर पश्चिमी घाट तक फैली एक आदिवासी जाती थी इसका नेतृत्व भाऊ सरे, चिमना जी जादव तथा नाना दरबारी कर रहे थे |

खोंड विद्रोह 1846:-

उड़ीसा के खोंड में आदिवासियों के विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजों द्वारा इनकी नरबलि प्रथा को समाप्त करना था ,खोंडो में नरबलि प्रथा विद्यमान थी ,जिसे मेरिया बली कहते थे|  खोंडों में यह विश्वास था कि इस बलि से खेतों में उर्वरता बढ़ती है तथा वर्षा इत्यादि नियमित होती है दिसंबर 1846 में चक्रबिसोई के नेतृत्व में विद्रोह हो गया|


संथाल विद्रोह 1855:-

1855 में बंगाल ,बिहार ,झारखंड की संथालो का विद्रोह जमीदारों के खिलाफ था क्योंकि वह उनकी जमीनों पर कब्जा कर लेते थे तथा उन पर साहूकारों ने अपना ऋण जाल फैला दिया था |संस्थानों ने पहली बार वीर सिंह माझी के नेतृत्व में एक विरोधी दल बनाया था| 30 जून 1855 को चार भाइयों सिद्धू ,कान्हू, चांद और भैरव ने एक व्यापक विद्रोह करने का आवाहन किया ,इन्हीं ने विद्रोह का नेतृत्व भी किया |संथालो ने बहादुरी से सेना का सामना किया और किसी ने आत्मसमर्पण नहीं किया ,अंततः 18 56 ईसवी तक विद्रोह का दमन हो गया |



कूकी और रियांग विद्रोह 1860:-

1860 ईसवी में त्रिपुरा में कूकियो और रियांगों ने 860-1861 में साहूकारों तथा अंग्रेजी शोषण के खिलाफ विद्रोह कर दिया था कूकियों का नेतृत्व रतनपुँइया ने किया|

रंपा विद्रोह 1879:-

तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश मे यहां के रंपा मुट्टा कहलाते थे तथा जमीदार मुट्टादार कहलाते थे |नए आबकारी कानून के तहत घरेलू उपयोग के लिए ताड़ी निकालने पर यहां रोक लगा दी गई तथा यह कार्य ठेकेदारों को सौंप दिया गया, इस विद्रोह के नेतृत्व कर्ता चंद्रैय्या, सरदार जंगम ,अंबुल रेड्डी ,तम्मान डोरा आदि थे|


बिरसा मुंडा (उन्गूलन) विद्रोह 1899-1900:-

 यह बिहार (वर्तमान में झारखंड) के मुण्डा आदिवासियों का जमीदारों तथा ब्रिटिश शासकों के प्रति भीषण आदिवासी विद्रोह था |इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था जो कि एक ईसाई मिशनरी द्वारा शिक्षित आदिवासी था|
 बिरसा मुंडा ने खुद को जगतपिता घोषित किया था

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