उत्तर प्रदेश के प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh (2025)

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  उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान | Research Institutes in Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश में स्थित प्रमुख अनुसंधान संस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है। इस राज्य में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान संस्थान कार्यरत हैं, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT Kanpur) स्थापना: 1959 | स्थान: कानपुर IIT कानपुर उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध तकनीकी संस्थान है। यह इंजीनियरिंग, विज्ञान, और अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी है। यहाँ उच्च स्तरीय प्रयोगशालाएँ, रिसर्च प्रोजेक्ट्स और नवाचार केंद्र मौजूद हैं। प्रमुख क्षेत्र: इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, पर्यावरण तकनीक योगदान: टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर और स्टार्टअप विकास 2. सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट (CDRI), लखनऊ स्थापना: 1951 | स्थान: लखनऊ यह संस्थान औषधि अनुसंधान में भारत के सबसे ...

संयासी विद्रोह |शमशेर गाजी का विद्रोह |रंगपुर के किसानों का विद्रोह| सुबान्दिया विद्रोह|पूना का रामोसी विद्रोह|पागलपंथी विद्रोह |gk question in hindi gs |

 संयासी विद्रोह 1763 से 1800

इस विद्रोह को सन्यासी विद्रोह का नाम बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग ने दिया था ,इस मूल रूप से यह एक कृषक विद्रोह था, लेकिन इसमें कारीगर समुदाय ,सैनिक ,फकीर ,सन्यासी भी शामिल थे |इस विद्रोह में शामिल लोग ओम वंदे मातरम का नारा लगाते थे ,1786 ईस्वी में इस विद्रोह के नेता मजनू शाह की ब्रिटिश सेना से संघर्ष के दौरान मृत्यु हो जाने पर यह विद्रोह मंद पड़ गया|

 बंगाल के उपन्यासकार बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपने उपन्यास आनंदमठ का कथानक  सन्यासी विद्रोह पर आधारित था | 


शमशेर गाजी का विद्रोह 1767 से 1768 तक

यह त्रिपुरा के शमशेर गाजी के नेतृत्व में एक संगठित कृषक विद्रोह था यह विद्रोह जमीदारों तथा ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों के विरोध में हुआ था, इस विद्रोह का केंद्र रोशनाबाद परगना था |

रंगपुर के किसानों का विद्रोह 1783-

यह विद्रोह एक जमीदार देवी सिंह के अत्याचारों के खिलाफ फैला था, नूरुलुद्दीन नामक एक किसान के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया तथा लगान न  अदायगी तथा ब्रिटिश हुकूमत ना मानने का निर्णय लिया | इसका परिणाम यह हुआ कि रंगपुर का लगान वसूल नहीं हो पाया लेकिन बाद में विद्रोह को दबा दिया गया |


सुबान्दिया विद्रोह 1792 -

पूर्वी बंगाल के बाकरगंज जिले में एक स्थान सुबान्दिया था जहां विद्रोह का नेतृत्व कर्ता बुलाकी साह था


पूना का रामोसी विद्रोह. 1826 से 1829-

अंग्रेजों ने जब यहां अपनी नई भू राजस्व व्यवस्था लागू की, तो रामोसिया ने बढ़े हुए लगान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था ,यहां के किसानों ने 1826 में उमा जी के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया क्योंकि इसी के ठीक पहले वाले वर्ष में सूखा पड़ने से किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे |


पागलपंथी विद्रोह 1825 से 1833-

 पागलपंथी विद्रोह बंगाल क्षेत्र में फैला था यह विद्रोह जमीदारों तथा ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ किसानों का विद्रोह था यह दो बार हुआ 1825 ईस्वी में तथा 1833 मे
          - इसे पागलपंथी इस कारण कहते हैं क्योंकि यह बंगाल की बाउल धर्म के लोगों द्वारा किया गया था ,इस विद्रोह का नेतृत्व पागलपंथी धर्म के प्रचारक कर्म साह के पुत्र टीपू ने किया था टीपू कहता था कि "सभी मनुष्यों को ईश्वर ने बनाया है, कोई किसी के अधीन नहीं है, इसलिए ऊंच-नीच का भेदभाव करना उचित नहीं है "
-1825 में टीपू के नेतृत्व में विद्रोह हुआ था | 
-1833 में जानकू पाथर और दोबाराज पाथर के नेतृत्व में हुआ था |

फराजी विद्रोह 1838 से 1847 -

फराजी विद्रोह कृषकों का विद्रोह था लेकिन इसका नेतृत्व फरायजी संप्रदाय के दूदू मियां उर्फ मोहम्मद मोहसिन ने किया था ,इसलिए इसे  फराय जी विद्रोह कहते है|
 फरायजी शब्द का तात्पर्य अल्लाह की हुकुम को मानने वाला | यह बंगाल की फरीदपुर जिले के मुसलमानों का एक संप्रदाय था जिसके प्रवर्तक फरीदपुर की शरीयतुल्ला थे, दादू मियां ने घोषणा की कि भूमि अल्लाह की देन है इसलिए व्यक्तिगत उपयोग के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी इसे अपने कब्जे में बनाए रखने और उस पर कर लगाने का अधिकार किसी को नहीं है |

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