कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन (लखनऊ पैक्ट)-
कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन का ऐतिहासिक महत्व था इसमें कांग्रेस के नरमपंथी और गरम पंथी दलों का सम्मिलन हुआ | तथा मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हुआ |
1913 ईस्वी के कराची अधिवेशन में लीग ने घोषणा की थी , कि लीग का उद्देश्य है साम्राज्य के अंदर हिंदुस्तान के लिए स्वराज्य हासिल करना और उसके लिए वह हिंदुस्तान के अन्य संगठनों से सहयोग करेगी |
दिसंबर 1915 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन एक साथ बम्बई में हुए, यह पहला अवसर था कि लीग और कांग्रेस के अधिवेशन एक साथ हुए | मुस्लिम लीग की अध्यक्षता मजहर -उल- हक ने किया तथा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्षता सत्येंद्र प्रसन्ना सिन्हा(S.P.SINHA) ने किया |
1916 में लखनऊ में भी कांग्रेस और लीग के अधिवेशन साथ- साथ हुए|
कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिका चरण मजूमदार ने की |
मुस्लिम लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की |
इसी समय कांग्रेस और लीग के मध्य 19 बिंदुओं पर राजनीतिक समझौता हुआ जिसे लखनऊ पैक्ट भी कहते हैं |
1) भारत को स्वायत्तशासी राज्य का दर्जा
2) गवर्नर तथा गवर्नर जनरल के बीजों के अधिकार की मान्यता
3) गवर्नर तथा गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में आधे भारतीय होनी चाहिए
4) अल्पसंख्यकों को निर्वाचित संस्थाओं में पृथक प्रतिनिधित्व प्राप्त हो
5) भारतीयों को ब्रिटिश भारत में ब्रिटिश नागरिकों के बराबर दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए
6) प्रशासनिक अधिकारियों से न्यायिक अधिकार छीन लेनी चाहिए
कांग्रेस और लीग का समझौता एक दूषित परंपरा की शुरुआत थी , क्योंकि सांप्रदायिक आधार पर जिस सुविधा के सिद्धांत को कांग्रेस ने स्वीकार किया | अंततः देश का विभाजन भी इसी सुविधा के सिद्धांत का परिणाम था|
लखनऊ अधिवेशन में ही उग्रवादी जिन्हें 9 वर्ष पूर्व 1907 कांग्रेस से निष्कासित किया गया था, एनी बेसेंट के प्रयास से उग्रवादियों तथा उदारवादियों का पुनर्मिलन हुआ |
वर्ष 1916 में मुस्लिम लीग और कांग्रेस के मध्य समझौता कराने में मोहम्मद अली जिन्ना एवं बाल गंगाधर तिलक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान था | इनका उस समय स्पष्टतः मनना था कि भारत में स्वशासन हिंदू-मस्लिम एकता के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है |
मुस्लिम लीग ने इस समझौते के बावजूद पृथक अस्तित्व बनाए रखा तथा वह मुसलमानों के लिए पृथक राजनीतिक अधिकारों की वकालत करती रही| 1922 तक दोनों इस समझौते के अनुरूप मिलकर कार्य करते रहे किंतु असहयोग आंदोलन के समाप्त होने के साथ ही यह समझौता भंग हो गया और लीग ने पुनः अपना पुराना रास्ता पकड़ लिया |
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